Tuesday 4 December 2012

कहानी : दो पागल थे........


दो पागल थे .......... पता नहीं कब और कैसे पागल हुये ...... लोग बताते थे की पहले दोनों ठीक थे .....काम भी करते थे फिर दोनों में दोस्ती हो गई ..... फिर साथ आना जाना बढ़ गया ...... पहले पहल तो सब ठीक रहा ....फिर एक दिन अचानक दोनों लड़ते हुये मिले, ये इसके कपड़े फाड़ रहा था और वों उसके .......... लोगो ने समझाया के क्या कर रहे हो तो उल्टा जमाने पर बन बैठे .....दोनों इकट्ठा हो गये और लड़ने लगे ज़माने से ......... अगर जमानेवाले कहते कि दिन है तो ये कहते रात है .....अगर जमानेवाले कहते पतझड है तो ये कहते बहार है ........ सूरज को चाँद समझते ......चाँद को खिलौना ...और खिलौनों को तोड़ देते .....खैर थे तो पागल ही कुछ भी कर सकते थे.... पहले तो जमानेवाले ध्यान भी देते थे इनकी बातों पर ........ फिर छोड़ दिया .......कौन पागलो के मुह लगे ...... धीरे धीरे वक्त गुजरता गया ...... और इनका पागलपन बढ़ता गया ............ इनकी मस्ती, खो खो, खी खी, हो हो, हा हा से  जमानेवाले खीझने लगे ........ कोई कहता नाक में दम कर रखा है .....कोई कहता दम तो देखो सालो का ......... कोई कहता पागल है साले .......... एक दिन तो गज़ब हो गया दोनों ने धमाका कर दिया, सब से सच बोलने लगे मोटे से मोटा कहने लगे, गंजे से गंजा कहने लगे, चोर से चोर कहने लगे, गद्दार से गद्दार कहने लगे........ यहाँ तक तो  जमानेवाले सहते रहे लेकिन जब ....सिपाही से चोर बोला और  राजा से गद्दार तो सब को गुस्सा आ गया ....... सब ने एक दूजे की बात मानते हुये .........ये फैसला लिया कि अब पगालो का इलाज कराना जरुरी हो गया है ....... फिर लोगो से राय ली गई कि इलाज कैसे हो .....एक पुजारी बोला इन्हें हनुमान जी के पास ले चलो ..... वों पागलो को ठीक कर देते है ....दोनों की पेशी अगले दिन हनुमान जी के दरबार में हुई ...... हनुमान जी बोले मैं इनका इलाज नहीं कर सकता ......लोगो ने पूछा क्यू प्रभू आप तो सब का इलाज कर सकते है .... भूत पिचास निकट नहीं आवे..... अरे कहते है ना आपकी चालीसा में हम .........हनुमान जी बोले  ..... ये तो पागल है और इनका दिमाग खराब है भाई भूत, राक्षस या असुर होते तो इनका इलाज कर  सकता था   ......... सबने हनुमान जी को नमन किया और फिर से सभा बुलाई ....सभा में फिर से निर्णय हुआ इन्हें पीर बाबा की मजार पर ले चलो ...पीर बाबा ने अच्चो अच्छो को ठीक किया है ..........फिर पीर बाबा के सामने अर्जी लगाईं गई ........पीर बाबा का जबाब भी वही आया जो हनुमान जी ने कहा ......... लोग थोड़े निराश हो गये ....पर इलाज जरुरी था सो फिर सभा बुलाई गयी ..... सब ने फिर से सोचा कि क्यू ना इन्हें वैध जी को दिखाया जाये .........वैध जी  को बुलाया गया, वैध जी को बताया गया कि हनुमान जी और पीर बाबा दोनों ने पागलो इलाज करने से मना कर दिया ..... वैध जी  ने कहा कोई बात नहीं है भाई ये कोई टोना-टोटका या ऊपरी चक्कर तो है नहीं की आदमी के  बस की बात ना हो, आप लोगो ने यूँ ही हनुमान जी और पीर बाबा दोनों को परेशान किया ....भाई विज्ञान भी कोई चीज होती है ......और वैध जी ने इलाज चालू किया ....... राजा ने वैध जी को हर वो वस्तू उपलब्ध कराई जो पागलो के इलाज के लिये जरुरी थी .......वैध जी कहते गये और राजा देता गया ....पागलो का इलाज जोर शोर से जारी था ........... कई दिन बीत गये .....कई महीने बीत गये ........फिर कई साल बीत गये ....... जमानेवालों को पागलो की सुध ना रही ..........फिर अचानक दूर देश से एक खबर आई ...... वहाँ कुछ पागल थे जिन्होंने पूरे देश को पालग कर दिया ...... फिर वहाँ तख्तापलट हो गया ....और पागलो ने सबसे अच्छे पागल को आपना सरताज बना लिया .....अब वहाँ सब पागलपन करते थे .....मस्ती करते थे .... खो खो, खी खी, हो हो, हा हा करते थे ......... अब जमानेवालों को याद आया हमारे यहाँ भी दो पागल थे, क्या हुआ उनका ठीक हुये या नही .....क्या वैध जी सफल हुये ......... जमानेवालों ने फिर सभा बुलाई .......... वैध जी को तलब किया गया ......पूछा गया क्या हुआ पागलो का ....... वैध जी ने एक लंबा और मोटा बयान जारी किया ...जो लोगो की समझ से परे था ...........पर लोग जान गये कि पागल ठीक नहीं हुये ..... राजा के दरबार में बैठक हुई जिसमे ........... जिसमे पागलो के इलाज पर चर्चा हुई .......... दूर देश से लोगो को बुलाया गया और उनसे अपने विचार व्यक्त करने को कहा गया ........  जब विचार मंथन से भी समस्या हल नहीं निकला तो  राजा ने इसे राष्ट्रिये आपदा घोषित करते हुये ...........इस आपदा से निपटने का का अपने जिम्मे कर लिया ............ और दूसरी ओर पागलो का पागलपन चरम पर था कुछ लोगो को वों ये समझाने में सफल हो चुके थे कि पागल होना ज्यादा अच्छा है लोग खुलकर तो सामने नहीं आ रहे थे फिर भी दबी दबी जुबान में पागलो का समर्थन कर रहे थे .........खैर राजा तो राजा था, वों समझता था जो दूर देश में हुआ है वों उसके देश में भी हो सकता है ...... जमानेवाले और पागल दोनों उसकी प्रजा है .....वों दोनों का राजा है .........वों प्रजा के साथ कुछ भी कर सकता है .........तो उसने निर्णय लिया कि एक पागल को मार दिया जाये .........दोनों साथ साथ पागल हुये थे ........तो राजा ने दोनों पागलो को अपने दरबार में बुलाया और उनसे पूछा तुम दोनों में से बड़ा पागल कौन है ........पागल ने राजा से पूछा क्यू ??...........राजा ने कहा में उसी की बात सुनूगा जो बड़ा पागल होगा .........भाई आपको अपना प्रतिनिधि चुनना ही होगा ......पागल सोच में पढ़ गये ........पहले पागल ने दूसरे पागल से कहा मैं बड़ा पागल हूँ और मैं प्रतिनिधित्त्व करुगा .......इस पर दूसरा बोला नहीं मैं बड़ा पागल हूँ और प्रतिनिधित्त्व मैं ही करुगा.......दोनों पागल आपस में लड़ने लगे .......कई दिनों तक लड़ाई चली ....कई महीनों तक लड़ाई चली .....कई सालो तक लड़ाई चली .....फिर एक दिन एक पागल ने हार मान ली और पागलो को उनका प्रतिनिधि मिल गया ..... फिर वों राजा के पास पहुचे..... राजा ने तत्काल ही प्रतिनिधि पागल को फांसी पर चढाने का फैसला सुना दिया ....... आनन फानन में एक पागल को फांसी पर चढा दिया गया ......अभी दूसरा पागल बहुत रोया .....बहुत दुःख हुआ उसे .......पर पागलो के दुःख से  किसी का क्या लेना देना ...... पर अचानक एक दिन उसने पागलपन बन्द कर दिया वों अचानक ही ठीक हो गया ........ जमानेवाले बड़े खुश हुये ....... उस दिन शहर में उत्सव मनाया गया ......सब कुछ पहले जैसा सामन्य हो गया ........ सब ने राजा की तारीफ़ की .....जो काम हनुमान जी और पीर बाबा नहीं कर सके और वैध जी भी काम नये आये .....वों काम राजा ने कर दिया ........ अब दूसरा पागल कभी कभी अपने दोस्त को याद कर पागलपन करता है ....... पर अकेले में ....कभी खुद को करंट लगाता है और कभी खुद को चांटे मारता है ..... उसे बड़ा अफ़सोस है कि उसका दोस्त पागलपन की भेट चढ गया ....... वो उन दिनों को याद कर अक्सर रोता है जब वों पागल था ..... जमानेवाले भी उन दिनों को याद करते है ....और राजा तो इतहास में अमर हो गया ..उसने अपने देश की एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय समस्या को हल किया था ....कुछ दूसरे देशो ने भी राजा के इस कार्य की प्रशंसा की और अपने देश में भी यही उपाय किया पागलो से निपटने के लिये ....... कुछ सफल भी रहे ...... अभी तो इन पागलो की कानी का दौर थमा भी ना था और आज फिर से खबर आई है कि दो लोग फिर पागल हो गये है .....
अमितेष जैन

5 comments:

  1. अच्छा प्रयास है अमितेश जी

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  2. वाह भई कहानी ने अंत तक बांधे रखा ...
    अंत को किसी धारा से जोडते तो सोच को और विस्तार मिलता
    कहानी का प्रवाह केंद्रित हो जाये तो वेग पाठक को चमत्कृत कर देता है

    बधाई स्वीकारें

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  3. वाह भाई बहुत साथक प्रयास है आज के सन्दर्भ में सटीक बिलकुल .........हार्दिक शुभकामनाये .......

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  4. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 30/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

    कृपया वर्ड व्हेरिफिकेशन हटाएँ

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