
मैं वहाँ पहुचा ही था ......कि हवा ने मुझे छुआ .. मेरे
गालो को सहलाते हुये बोली आओ, आ जाओ ....... तभी चारों ओर के पेड़ कोलाहल करने लगे
....... और शांत हो गये ....शायद किसी बुजुर्ग पेड़ ने मुझे पहचान लिया था और बता दिया
था ...कि अरे तो वही है ....जो पहले बच्चा हुआ करता था .... हां उम्र तो बड़ी है पर
थोड़ा बच्चा और हो गया है ..........मुझे लगा सभी पेड़ खिलखिला दिए ........पर मैंने
देखा तो मुस्कुराने लगे ..........

अभी पेडो ने मुझे घूरना बन्द किया ही था ....कि बूढ़ऊ द्वारे
ने मुझ पर नज़र डाली .......और विनम्र होकर अंदर जाने का रास्ता दिया .........और जाते
जाते बोल उठा ....... कैसे हो .....मैंने उसे देखा ....तो बोला भाई भूल गये क्या
...पहचाना नहीं हमें .... मैंने कहा तुम बिलकुल नहीं बदले ........ उसने कहा बदल जाता
तो तुम अंदर नहीं आते ..... मैं आगे बड गया और सोचा .....हां तुम बदल भी नहीं सकते
....द्वारे ने फिर कहा द्वार कभी नहीं बदलते बेटा ..वो बस खुलते है ........ मैंने
पलट के देखा तो फिर मुस्करा कर बोला ..जाओ ....... आगे एक मन्दिर था .... लाल, गुलाबी, पीला ......... मैंने मन्दिर से पूछा ये रंग कहाँ से
लिये ...... मन्दिर बोला सूरज आता है देने ........ यही तो बैठता है ......दरी बिछा
कर ठीक मेरे दाई ओर ..... मैंने दाई ओर देखा
तो सचमुच एक लड़का गुलाब और गेंदे की मालाये, सिंदूर और अगरबत्ती लिये बैठा
था ....मैं पूछा तुम सूरज हो क्या ......लड़का मुस्कुरा दिया बोला भैया प्रसाद लोगे
पाँच रूपए का है ..... मैंने प्रसाद लिया .....लड़का चमक उठा ..... शायद सूरज ही होगा
.... लड़का बोल उठा भैया अगरबत्ती भी ले लों ना ...मेरे घर में मैं ही हूँ कमाने वाला
कुछ पैसे और मिल जायेगे ....मैं अगरबत्ती ली ..........लड़का सचमुच सूरज था ....लड़का
थोड़ा और चमक उठा ........
आगे राजा राम, सिंहासन पर बैठे थे ...मैंने
उन्हें देखा ......उन्होंने भी मुझे देखा ....... मैंने
कहा सिंहासन अच्छा है मैं बैठ सकता हूँ?..... राम ने पूछा...तुम राम हो ??
...मैंने कहा नहीं ........राम ने कहा पहले राम बनो फिर बैठ सकते हो ........
मैंने फिर पूछा तो क्या मैं राम बन सकता हूँ?? .......राम ने कहा हां हां क्यू
नहीं कोशिश करो ...... मैंने कहा जी ......राम मुस्कुराने लगे ..... राम ने फिर
पूछा तुम कौन हो? ...... मैंने कहा हिन्दू हूँ मैंने सोचा राम खुश हो जायेगे.....राम
हँसने लगे ...... मैंने राम से पूछा हँसे क्यू ?? ...राम ने कहा ..... सिंहासन पर
राम बैठा करते है, राजा बैठा करते है हिन्दू या मुसलमान नहीं ............ऐसे बनोगे
राम .........मैं उदास हो गया ...... राम ने कहा कोई बात नहीं ...... अपनी गलतियों
से सीखो ......बन जाओगे ........अब जाओ मुझे और लोगो से भी बात करनी है
.....उन्हें भी राम बनाना है ...
मैं आगे चल दिया ........मुझे किला मिला उसने मिलते
ही पूछा कहानी सुनोगे ....... मैंने कहा हां हां सुनाओ सुनाओ ....किले ने कहा
कहानी लंबी है .......क्या तुम बैठ कर सुनोगे .मैंने कहा हां ........हम दोनों
आमने सामने बैठ गये ........किले ने कहानी सुनाई ....चंदेलो की कहानी .....फिर
बुंदेलो की कहानी .......भारती चन्द्र की कहानी .......अकबर की कहानी .....मधुकर
शाह की कहानी.......जहाँगीर की कहानी.........वीरसिंह बुंदेला की कहानी.........अबुलफजल
की कहानी .....शाहजहां की कहानी .....जुझार सिंह की कहानी ..........हरदौल की
कहानी ........छत्रसाल की कहानी.......... जहांगीर महल की कहानी.. ... राज महल की
कहानी.... रामराजा मंदिर की कहानी.... राय प्रवीन महल की कहानी.... इन्द्रमणि की
कहानी........ लक्ष्मीनारायण मंदिर की कहानी .....चतुर्भुज मंदिर की कहानी........
फूलबाग की कहानी......सुन्दर महल की कहानी.....और आखिर में ...केशवदास का काव्य ...........फिर
बेतवा की कहानी ......मैंने कहा रुको भाई मैं सुनते सुनते हाफ गया ........ठीक है
.....मैंने पूछा क्या मैं इन सब से मिल सकता हूँ .....किले ने कहा नहीं ....मैंने
पूछा क्यू नहीं ....किले ने कहा सब चले गये, तुम रुकोगे .....मैंने कहा नहीं मुझे
जाना होगा ......किले ने कहा इन्हें भी जाना था .... मैंने कहा ओह, फिर अब मैं
क्या करू??........ किला बोला जाओ बेतवा से मिल आ आओ एक वही है जो हमेशा चलती रहती
है पर जाती कहीं नहीं ......

मैंने देखा तो बेतवा मुझे पुकार रही थी ..........पुल
ने कहा जाओ उस से मिल लों .....वों पागल है ......मैंने पूछा कैसे .......पुल ने
कहा वों उन्मुक्त है, आजाद है, उसे बहना आता है ...सो इतराती है .........वों पूरी
पागल है ........मैं बेतवा के पास पंहुचा ....बोली बैठ जाओ .........मैं बैठ गया
........ बेतवा आदेश देती है ...... बेतवा ने पूछा कैसे हो ......अच्छा हूँ मैंने
कहा ....... बेतवा बोली अच्छे ही रहना ..... पुल भी अच्छा है पर मुझे उसे चिढाने
में मजा आता है .....एक वों ही है जो मुझ से बात करता है .......बाकि सब मिल कर
चले जाते है ......... मैंने कहा किला भी तो है, गाँव भी है और राजा राम भी
.....फिर तुम से बात करने वाले तो बहुत लोग है ........ बेतवा बोली हा है तो
.....पर किला बुढा हो चुका है और राजा जी को लोगो का न्याय करने से फुर्सत नहीं
है.......गाँव को अपनी ही चिंता है .........एक पुल ही है जो मुझ से बतियाता है
........खैर तुम बताओ ........क्या तुम रुकोगे हमेशा मेरे पास ......मैं कुछ बोलता
उस से पहले बेतवा बोल उठी ..... नहीं रुकोगे ...कोई नहीं रुकता भाई ...... ना
चंदेल रुके, ना बुंदेले, ना भारती चन्द्र,
ना मधुकर शाह, ना वीरसिंह और ना ही हरदौल, ना रुकी राय प्रवीन.....मैंने कहा तुम तो
हो बेतवा .....भला तुम से कौन जीत पाया है ........ बेतवा तपाक से बोली कोई नहीं
....हम दोनों मुस्कुरा दिए ....मैं इधर उधर देखने लगा .... बेतवा बोली आओ मेरे साथ
खेलोगे नहीं .... मैं बेतवा की गोद में जाने लगा.... तभी लोगो ने मुझ से कहा ...मत
जाओ .... डूब जाओगे ......और वों मुस्कुरा दी ......मैंने सोचा ये तो बिलकुल माँ जैसी
है .......... ये क्या डुबोयेगी ........ और हम दोनों फिर खेलने लगे .............खेलते
खेलते मैंने पूछा ..... तुम्हारे चारों ओर बड़ी खुबसूरती है बेतवा, कैसे ?........ बेतवा
ने कहा खुद को सुन्दर कर लों सब सुन्दर हो जायेगा.......मन में सुंदरता होनी
चाहिये बस .......मैंने देखा उसने पत्थर तराश कर सवांर दिए
थे ....... पेडो को हरा कर दिया था ....और कुछ जानवरों को अपने आस पास बुला लिया
था ...... कुछ फूल लगा लिये थे .....और एक घाट बना लिया था ....... बेतवा कलाकार
है ..... बेतवा चित्रकार है ....... बेतवा मेरे साथ फिर खेलने लगी ........मैंने
फिर पूछा बेतवा मुझे बहना सिखाओगी ...... बेतवा ने कहा हा क्यू नहीं, बहना तो बड़ा
आसान है ......बस खुद को स्वतंत्र कर दो ....सभी बंधनों को तोड़ दो ........अपने
लिये जगह बनाओ .......और उतर जाओ गहराई में ........तुम बहने लगोगे ........मैंने
कहा मुझ से नहीं होता ....... बेतवा बोली हो जाएगा धीरे धीरे .......सोचो, मनन करो
.......मैंने कहा ठीक है .....तभी बेतवा ने मुझे गुदगुदाना चालू किया ...मैं
खिलखिलाने लगा ...... बेतवा भी हँसने लगी ..... बहुत देर तक वो मुझे बच्चों की तरह
खिलाती रही.........वो बच्चा बन गई थी ....... मैंने उस से कहा ...अब जाऊ बहुत देर
हुई ......... अँधेरा होने को है ...... बेतवा ने कहा जाओ ......मगर फिर आना .....
मैंने कहा बिलकुल आऊंगा ........ बेतवा मुस्कुरा दी ...मैं भी मुस्कुरा दिया
........ मैं जाने लगा ..... बेतवा जोर से चिल्लाई ...आओगे ना ...मैं भी जोर से
बोला हां ........ अब मैं पुल पार कर रहा था ..... पुल ने मुझे नहीं रोका
......जाने देना ही उसका काम है ....... हां जाते जाते पूछा जरुर .... बेतवा क्या
कह रही थी..... मैंने कहा बस ऐसे ही कुछ खास नहीं ...... पुल बोला जरुर चुगली कर
रहि होगी .....मैंने कहा नहीं ......पुल बोला लगता है उसने तुम्हे अपने रंग में
ढाल लिया है, मैं तुम्हे पढ़ सकता हूँ .....बेतवा ने तुम्हे बहना सिखाया है
.......मैंने कहा हां, पर मुझे बहना आया नहीं है ......पुल बोला आ
जायेगा........तभी मैंने देखा सूरज आ रहा था सामने से ....मैं मुस्कुराया पूछा
कहाँ जा रहे हो ...बोला भैया शाम होने को है मैं जा रहा हूँ कल फिर आऊंगा, मेरा तो
रोज का यही काम है .....फिर सूरज बोला भैया जा भी रहे है क्या .....मैंने कहा हाँ ....फिर आइयेगा
.....मैंने कहा बिलकुल सूरज जरुर आऊंगा .....सूरज बोला अच्छा भैया
शुभरात्री...मैंने कहा तुम्हे भी ....हम दोनों मुस्कुराने लगे .........फिर गाँव
मिला .....गाँव ने पूछा मिल आये बेतवा से ....... मैंने कहा हाँ .....और पूछा तुम
बेतवा का ख्याल क्यू नहीं रखते .......गाँव बोला भाई मैं तो अपना ही ख्याल नहीं रख
पा रहा हूँ ........ और बेतवा तो माँ है ....वो सब का ख्याल रखती है ..... अपना भी
रख ही लेगी ......मैंने कहा फिर भी ....गाँव बोला कोशिश करूगाँ भाई ........मैं
आगे चल दिया ....... मैंने किले से कहा जा रहा हूँ .......किले ने बस हाथ हिलाया
....... बेतवा ने सही कहा था किला बुढा हो चुका है ....... द्वारे और मन्दिर ने एक
साथ आवाज लगाईं पूछा कब आओगे ........मैंने कहा जल्द ही ..... उन्होंने कहा ठीक है
.......मैंने कहा ख्याल रखना अपना .......दोनों बोले उसके लिये बेतवा तो है
.......और हँस दिए ...मैं भी हँसने लगा .... मैं लौट रहा था ......तभी मैंने देखा
एक बुढा मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा है .......कपड़े फटे पर मुख पर तेज ....
मैंने झिझकते हुये पूछा आप कौन है ......बुढा बोला मुझे नहीं पहचाना ...मैं ओरछा
हूँ .....बूढ़े ने पूछा घर जा रहे हो
......मैंने कहा हां ...ठीख है अपना ख्याल रखना ....वहाँ बेतवा नहीं होगी .मैंने
कहा जी .......बूढ़े ने कहा खुश रहो .........मैं चला आया .......घर आया तो लगा ......कुछ
छूट गया है .......शायद मैं कुछ छोड़ आया हूँ .....देखा तो मन नहीं था मेरा, मेरे
पास ......शायद बेतवा ने ...रख लिया ...चोट्टी कहीं की ..... अबकी फिर से जाउगा तो
ले आऊंगा ....
~अमितेष
really written very nicely...
ReplyDeleteबहुत रोचक लगा लेख
ReplyDeleteSo nice story read today, pls keep writing :)
ReplyDelete...Sujeet
ननिहाल रहा टीकमगढ़ में...
ReplyDeleteओरछा जाते हुए...बेतवा के इसी पुल पर टकरा कर हमारी ब्रेक फेल हुई गाडी रुकी थी कभी....
बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट को पढना..
अनु