Friday 4 May 2012

कहानी : लव स्टोरी


शाम का समय था, ठन्डे जा रही थी और गर्मियाँ आने को थी, मौसम ज्यादा खुशगवार होता है इन दिनों, एक आजीब सी महक होती है चारो और बसंत की और ऐसे में मिल बैठे दो फुरसतिये तो शाम का मजा दुगना हो जाता है| ऐसा ही हुआ उस शाम, मिल गये दो गुरु चेले| एक गुरु जो अपने कर्मो का मारा था, पहले तो पढ़ाई की नहीं, फिर बाप के धंधे से नफरत और उस पर बुरी लत, वही सिगरेट-बीडी, गुटखा-पान| पर गुरु में थे गुरु वाले लक्षण, जबानी का तजुर्बा, बाप की फटकार, और किस्मत की मार| और एक चेला, अभी नये नये खिले थे ये भी और ठलुओ के पार्टी के ब्रांड न्यू सदस्य थे, उस पर किस्मत का कहर गुरु मिले तो भी यही, कॉलेज से छुट कर करके बाप की फटकार से बचने आते थे अड्डे पर, कश लेना तो बहाना था और यहीं प्रथम मिलन हुआ गुरु-चेले का, और धीरे धीरे मित्रता गहराती रही| वैसे कहानी तो ये पड़ोस की ही लगती है, है ना| तो दोनों साले ठलुआ को काम धाम कुछ नहीं, कश पे कश और फिजूल की बहस| अक्सर कस्वो में मिल जायेगें आपको ऐसे आवारा, जिन्हें दुनियां प्यार से “निठल्ला है बेचारा” कहती है, और गुस्से में “चुप वे ठलुऐ”|
अब पाठक सोचे में होंगे, के जनाब लेखक महोदय आप में न तो अक्ल है और न समझ, क्यू मौसम की बैंड बजाने पर तुले हुये हों यार, वसंत का मजा क्यों खराब कर रहे हों, अरे ये तो वों का वक्त है, जब मिलते है दो जबां दिल और बनती है प्यार की कहानियाँ, और एक आप है दिल-बिल तो गया तेल लेने, मिला दिया ठलुओं को, अब चरेंगे एक दूसरे का दिमाग और करेगें हमारा वक्त बरबाद| तो मित्रों मैं आपको एक बात बताता हूँ, कभी कभी इन निठल्लों की बकबास में बड़ी गहरी बात होती है| खैर छोडिये, हम आते है ठलुआ मिलन पर|
तो साहब दोनों ठलुए यू तो अक्सर मिलते रहते थे, पर आज तो कुछ खास था| एक तो वसंत उस पर ठंडी पवन, और उस पर चेले के मन में मचलते प्रश्न, फिर अड्डे पर सन्नाटा और उठने लगा ज्वार भाटा| तो चेले ने भूमिका बनाते हुये गुरु से कहा, “गुरुदेव, यार आज कल दिल नहीं लगता और बाप भी कुछ ज्यादा फटकारने लगा है|”
गुरु बोला,” अवे साले एक बात बाताओ तुम, ये बाप का फटकारना तो समझ आता है पर तुम्हारे दिल का न लगना समझ नहीं आता, अवे दिल ना हुआ साले ढक्कन हों गया, लग नहीं रहा??”
चेला बोला,” नहीं यार गुरु सच्ची, जब से वों शर्मा की लड़की को देखा है, तब से साला ना नींद आती है, न चैन, गुरु बस अजीब सा लगता है, लगता है साला शर्मा की लड़की हों और हम हों, बस बैठे और बतियाए|”
गुरु बोला,”बेटा हमें लग रहा है, तुम साले फस रहे हों प्यार-व्यार के चक्कर में, अवे मत जाओ साले, थोड़े बहुत काम के बचे हों, काम से चले जाओगे|
चेला बोला, “ अच्छा गुरु एक बात बताओ, जे प्यार आखिर होता क्या है??”
गुरु ने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाली, जलाई और कश लेते हुये बोला, “बेटे प्यार कुछ नहीं होता, साले सब आदमी को निठल्ले बनाने के धंधे है, तुम न पड़ना इन चक्करों में, सुनों भुत-प्रेत, विघ्न-बांधा का इलाज है, ये प्यार का कोई इलाज नहीं है|
हेऐ गुरु, चेला शरमाते हुये बोला, “ ऐसा थोड़े होता है, कुछ तो इलाज होगा, वों शर्मा की लड़की आ जाये तो भी ना क्या इलाज होगा??”
गुरु फिर बोला,” सुन वे, लड़की आये चाहे ना आये, साले मरोगे तुम ही, अवे चाहे कद्दू गिरे छुरी पर चाहे छुरी कद्दू पर साले कटना तो कद्दू को ही है, साले हमें गुरु कहते हों, तो हमारे तजुर्बे से भी काम लिया करों, मान लिया करो बात को, अभी संभल गये तो ठीक, नहीं तो जिन्दगी भर भुगतना पढ़ेगा|
चेला बोला,” अच्छा गुरु सच बताना तुम्हे प्यार हुआ है कभी??”
गुरु चिल्लाया,” अबे मना कर रहे है तुमसे और तुम बके जा रहे हो, सिगरेट पियो और खिसको, तुम्हारे बाप को पता चला तो तुम्हे तो मारेगा ही, हमें भी गालियाँ देगा, और तुम्हारी कोई वेल्यु हों या न हों, हमें सब जानते है|”
चेला बोला,” ठीक है गुरु, तुम कहते हों मान लेता हूँ, लाओ सिगरेट दो|”
चेले ने सिगरेट ली और चुप हों गया| देर तक एक खामोशी रही अड्डे पर| फिर गुरु बोला,” अबे चेले एक बात बात बता, साले क्या होता है तुम्हे आजकल, मतलब फीलिंग कैसी होती है ???”
चेला चौका, “गुरु अभी तो तुम मना कर रहे थे, और अब तुम पूछ रहे हों, गुरु क्या चक्कर है ??”
गुरु बोला,”चल जाने दे यार ऐसे ही पूछ लिया”
चेला बोला,” गुरु बस ऐसे ही या कोई बात है, सच बताओ गुरु, तुम्हारी कसम किसी से नहीं कहुगा|”
गुरु बोला, “ यार हम देख रहे थे, तुम्हे भी वैसा ही होता है, जैसा हमें होता था?”
चेला बोला, “ गुरु तुम्हे भी होता था, मतलब तुम्हे भी प्यार था??”
गुरु बोला, “ हां था तो रे”
चेला बोला,” कौन थी गुरु, तुम तो छुपे निकले??”
गुरु बोला,” थी यार एक, अपने डाक्टर साब है न, उनके बगल में रहती थी, सनोबर नाम था उसका”
चेला बोला,” वाह गुरु, आप भी खेले खाए है, तो गुरु सुनायेगे नहीं सनोबर का किस्सा??”
गुरु बोला,” सुनायेगे क्यू नहीं यार, पर सुनने के लिये दिल होना चाहिये”
चेला बोला,”मतलब गुरु हमारे पास दिल ही नहीं, अरे आप सुनाइये तो, साला हम से बड़ा दिल है किसी का??”
गुरु बोला,” तो सुनों भाई, लेकिन शर्त ये है, की सुनने के बाद दिल में दफन कर लेना, नहीं साले हम से बुरा कोई न होगा, समझे?”
चेला बोला,” हां गुरु, अरे हमें भी इस शहर में रहना है, इधर सुना और उधर भूल गये|”
गुरु बोला,” तो सुनों..” और गुरु देव खो गये पुराने यादों में फिर बोले, “ बात उन दिनों की है जब हम ११वी पढ़ते थे, यही दिन चल रहे थे, वसंती, चारो और एक महक, फिर डाक्टर साहब के बगल में रहने आये, मेनेजर साहब, बैक में थे, दो लड़किया थी उनकी, एक हमारे साथ पढ़ती थी, नाम था सनोबर|”
चेला बोला, “फिर गुरु??”
गुरु बोला, “ अव्बे चुपचाप सुनों बस, हां तो नाम था सनोबर, तो हमने जब सनोबर को देखा, तो वों हमें कुछ खास लगी, बस दिल में घर कर गई, सोचा ...लड़की हों जिन्दगी में तो सनोबर जैसी, न कोई रंग रोगन, न कोई लाग लपेट, बस कुदरत की नयाब चीज| फिर सोचा के भाई लड़की तो देख ली अब इसे पटाया कैसे जाये|”
चेला बोला,” हेएन”
गुरु ने इस बार टोका नहीं, गुरु बोला,”हां, फिर हमने कर दिये आशिको वाले चोचले चालु, सनोबर जिधर हम उधर और उन दिनों हमारे पास साइकल हुआ करती थी, तो उठाई साइकल और निकल लिये, दो बढ़िया ब्रांड की बुशर्ट और दो जीन्स बस यही पहनते थे उन दिनों| क्या स्कूल और क्या कोचिगं सब जगह जलजला भाई का|
चेला अपनी उत्सुकता बढाते हुये बोला फिर गुरु बोला,”वाह गुरु, फिर ??”
गुरु ने कहना चालु रखा,” फिर हुआ ये, के एक दिन सनोबर ने हमें देखा, पहली नज़र पड़ी थी उसकी हम पर, भाई वों दिन तो हम तुम्हे बता ही नहीं सकते, बिजलियाँ गिरी बिजलियाँ, अंदर तक हिल गये, हालत तो ये थी की अब गये की तब गये|”
चेला उचका,” अच्छा फिर गुरु|”
गुरु बोला,” फिर तो मर ही गये, उसने मुस्कुरा दिया”
चेला बोला,”ओ तेरे की”
गुरु बोला,” हां रे, बस वों था आखरी दिन, हमारे काम के होने का, वों उधर मुस्कुराई और हम यहाँ खत्म, फिर दो चार दिन बाद दिया एक पत्र, इत्र में लपेट के लाल कागज पर, उसने पढ़ा भी हमारे समाने और फाड़ भी दिया और चली गई भुनभुना के, अब क्या बताए, हम तो डर गये, कहीं बाप से कह दे, उसका बाप तो मारेगा ही, हमारा बाप मरेगा भी और घसीटेगा भी, लेकिन कहा किसी से नहीं|
चेला बोला,”फिर गुरु”
गुरु बोला,”फिर क्या वे, बस अपना ढर्रा जो चल रहा था चलता रहा| फिर एक दिन मिल गई, स्कूल के पास, कोई नहीं था हम और वों, मौसम सुहाना था, हमने भी पकड़ लिया हाथ और बोल दिया “
चेला बोला,” क्या बोला गुरु ??“
गुरु सीना चौड़ा करते हुये बोला,” हमने कहा, सुनों यदि हमारी बात का जबाव नहीं दिया तो हम मर जायेगे|”        
चेला बोला,” फिर गुरु “
गुरु बोला, ‘ फिर वों कुछ न बोली, बस खड़ी रही, हमने हाथ छोड़ दिया, फिर धीरे से पूछा, क्या हुआ??, तो झील से दो मोती टपक गये, रों डी यार वों|”
चेला बोला,” मगर क्यों गुरु??”
गुरु बोला, “हमें पूछा क्या हुआ रों क्यू रही हों, बुरा लगा, माफ कर दो, हम सवाल पूछते रहे, वों न में सिर हिलाती रही और रोती रही, फिर हम से  न रहा गया, हमने कहा या तो तुम बता दो नहीं तो आज ही जान देदेगे हम अपनी|”
चेला बोला,” फिर गुरु”
गुरु बोला,” फिर वों बोली”
चेला बोला,” क्या बोली??”
गुरु बोला, “ वों बोली, वीर सिह, समझों हम मुसलमान है और आप हिंदू, हमारे अव्बू कभी नहीं मानेगे, हम कभी साथ नहीं रह पायेगें|”
चेला बोला,” फिर गुरु”
गुरु बोला, “ फिर हमने पूछा, तो तुम हमसे प्यार नहीं करती??”
चेला बोला,”तब “
गुरु  बोला,” बोली, प्यार तो हम आपसे ही करते है और करते रहेगें, पर यदि आपको हमसे प्यार है तो आप हमसे फिर कभी बात न कीजिएगा|”
चेला बोला,” तब तुमने क्या किया गुरु”
गुरु बोला,” नहीं की बात, हम प्यार करते है उसे”
चेला बोला,” गुरु बात तो करनी थी, शायद मान जाती??”
गुरु बोला. “नहीं रे बात तो उसकी भी सही थी, हम हिंदू और वों मुसलमान, बाप तो हमारा भी नहीं मानता|”
चेला बोला,” गुरु बात तो सही है तुम्हारी, ये धर्म-जात बनाई किसने, साले का मुह तोड़ देते है, न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी|”
गुरु बोला,” हां यार,उसे तो आधी दुनियाँ के आशिक ढूंड रहे है|”
चेला बोला, “ गुरु कितनी अजीब बात है न, धर्म, मजहब, जात सब को जोड़ने के लिये बनाई, और इन्ही चीजों ने सब को बाँट के रख दिया|”
गुरु  बोला, “ हां यार, लेकिन अव क्या किया जाये, सब को कौन समझाए??”
चेला बोला, “ जाने दो यार गुरु, जो हों गया तो हों गया, तुम सिगरेट पियों....लों “
गुरु ने सिगरेट के दो कश लिये और जाने लगा|  
चेला बोला, “ गुरु जाते जाते एक बात और बताते जाओ, हम ये साला प्यार करें की नहीं?????”
गुरु बोला,” कर लों वे”
चेला चौका,” गुरु क्या कह रहे हों कर लों???”
गुरु बोला,” हां कर लों वे, यही तो एक चीज है जो हमेशा साथ रहती है”
और गुरु चला गया ..................
~ ©अमितेष जैन                

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