यहाँ, तीसरी गली में, जो आखिरी मकान है, वही जहाँ वो
शायर रहता है, अरे दाड़ी वाला नहीं है वो जो अब मुछमुंडा हो गया है, पंहुचा दो जरा
वहाँ, और चाचा के इतना कहते ही राजाराम चल पड़ा कोरियर वाले के साथ|
अभी
कोई एक आध साल हुआ होगा, एक पागल सा लड़का, जिसमे से सिगरेट की तीखी गंध आ रही थी
आंटी के पास आया बोला, “कमरा मिलेगा?”
आंटी बोली, “है तो...”
आंटी बोली, “है तो...”
लड़का बोला, “किराया ??”
आंटी ने कहा, “ तेईस सौ रुपय, सौ रुपय पानी का अलग और बिजली का सात रुपय
यूनिट, मीटर अगल है कमरे का, एक से ज्यादा ना रहना और सुनों जो करना है कमरे में ही
करना, पड़ोसियों को समस्या नहीं होनी चाहिए नहीं तो कमरा खाली करा लूगीं, आग लगे इन
पड़ोसियों में, कब से आएगा?”
लड़का बोला, “अभी से”
आंटी ने लड़के को फिर से देखा, ” सामान कहाँ है?“
लड़के ने रिक्शे की ओर इशारा किया और सामान लाने चला
गया|
ये औरत भी बड़ी दिलचस्प थी,
पड़ोसियों से एक ना बनती थी इसकी, बी. ऐ. पास, दिन भर टी वी से चिपकी रहती, घर में
बस पति, बच्चे नहीं थे, कोई कहता कि बाँझ है, कोई कहता पति पत्नी की लड़ाई में पेट
में बच्चा मर गया, फिर माँ न बन सकी, बेचारी | बस चाचा से बतियाती थी, करीब सत्तर
साल के चाचा सदियों से इस गली में रहते आये है जिसने देखा जब देखा राजाराम की
दुकान पर, चाचा को गली, महोल्ले, शहर, देश की सभी कहानियाँ पता है, चाचा पर हर
मर्ज की दवाई थी, कोई भी किस्सा आपके साथ हो वों चाचा के साथ हो चुका होता था,
कहते है चाचा की बीबी किसी के साथ भाग गई थी सो चाचा पगला गये और तब से संत जैसा
बर्ताब करने लगे, कोई ऐसा ना था जो चाचा से दुआ सलाम किये बिना निकलता हो, सो आंटी भी बोलती थी चाचा से,
राजाराम रोज चाचा के नाम की एक बंडल माचिस निकाल कर रख देता था, राजाराम की दुकान
तब से यहाँ है जब से शायद चाचा संत हुये, दोनों बिना कहें ही एक दूसरे की बात समझ
जाते, बस अंतर इतना था कि राजाराम घिस्सा खाता और चाचा पीते बीडी|
आंटी ने
सुबह सुबह देखा, अखबार पड़ा है दरबाजे पर, वों लड़का उठा रहा है जो कल ही आया है,
आंटी ने पूछा, “लड़के तुम
ने चालू किया अखबार?” लड़के
ने हां में सर हिला दिया, आंटी मुस्कुराई, लड़का अपने कमरे में चला गया| दोपहर में
डाकिया आया, दो खत लाया, आंटी ने बड़े आश्चर्य से पूछा, “किसके है??”
डाकिया बोला, “ पता तो आपका ही है आंटी, पर नाम है किसी विभोर राव ‘खुशहाल’ का”
आंटी बोली, “ ये खुशहाल क्या है रे “
डाकिया बोला, “ किसी शायर बायर को कमरा दिया है क्या आपने?”
आंटी सर खुजाते हुये बोली, “ क्या पता रे, अभी दिया तो है एक
लड़के को कमरा, दिन भर सिगरेट पीता है, कमरे से बहार नहीं निकलता रुक पूछ के आती
हूँ”
“ऐ तुम्हारा नाम विभोर है” आंटी ने खिडकी की दरांच से झांक कर पूछा
“हां“लड़के ने कहा
“ऐ लों तुम्हारी चिठ्ठी आई है” रुखी सी आवाज में आंटी ने कहा
लड़के ने डाकिये से चिठ्ठी ली और कमरे में
चला गया|
अचानक आंटी की आवाज फिर से आई, “ लड़के तुम लिखते हो क्या?”
लड़का बोला, “हां “
“लड़के तुम क्या लिखते हो?” आंटी ने फिर से पूछा
“कहानी, गाने, कविता सब लिखता हूँ” लड़के ने कहा
“ये खुशहाल क्या है?” आंटी ने कमरे को गौर से देखते हुये पूछा
“ये मेरा उपनाम है” लड़के ने बोला
“अच्छा,मैं भी बी. ऐ. तक पढ़ी हूँ” आंटी ने कहा और मुस्कुरा
दी
लड़का भी मुस्कुराने लगा, आंटी खुश थी वों कब से
चाहती थी उसके घर डाकिया आये, चिठ्ठी लाये, अखबार वाला आये, बचपन में उसके घर में
आती थी चिठ्ठियां, पर बाबू जी पढ़ने ना देते थे, फिर ये मुए फोन आ गये, टुर्र टुर्र
होते है, हलु हलु करते रहो बस| आंटी पहले से ज्यादा खुश थी, अब कभी किताबे आती तो
कभी चिठ्ठी, आंटी लड़के को देने से पहले खुद पढ़ लेती, लड़के को कोई फर्क ना पड़ता था
इस से, उसके कौन से जायजात के कागज आते थे, शुभकामनाएं बस, सो पढ़ ले आंटी, पेट तो
भर नहीं जाएगा उनका, वों तो रोटी से ही भरेगा ना| अब आंटी ने टी वी देखना कम कर
दिया था और अब वों कविताएँ गुनगुनाने लगी, पडोसने भी खुश रहने लगे थे आंटी से, अब
आंटी थोड़ा ठीक से बात करती थी या यूँ कहें कम से कम बात तो करती ही थी|
“ऐ लड़के, तुम अपना लिखा भी पढ़ने को दो कभी“आंटी ने एक दिन सुबह सुबह कमरे
में आकर लड़के से कहा, लड़के ने चुपचाप एक किताब लाकर दी|
“दरबाजे का दर्द, लेखक विभोर राव ‘खुशहाल’, अच्छा नाम है लड़के, किताब का
भी और तेरा भी” आंटी
किताब लेकर चली गयी|
आंटी दो दिन बाद फिर आयी “ले रे तेरी किताब, अच्छा लिख
लेता है रे तू” आंटी
ने लड़के को देखकर बोला, लड़का चुप रहा,
“क्या हुआ आज उदास क्यू है रे?” आंटी ने फिर पूछा
लड़का कुछ ना बोला| आंटी आज पहली बार कमरे में आकर
लड़के की बगल में बैठ गई और धीरे से बोली, “ पैसे नहीं है ??”
लड़के ने हां में सर हिलाया, “कितना कमा लेता है रे ?” आंटी ने फिर पूछा
लड़के ने धीरे से कहा, “पाँच हजार”
आंटी ने फिर कहा,” बस, ये दिन भर आँखे फोड़ता है और बस पाँच हजार, तुझ से अच्छा
तो राजाराम है बंडल माचिस से ही घर चला लेता है”
लड़के को ताना अच्छा ना लगा, और उसने आंटी को गुस्से
से देखा
“ऐसे क्या देखता है रे, चल कोई बात नहीं एक काम कर मुझे हजार
रुपय कम दे दिया कर और पानी के सौ रूपए भी मत दिया कर” आंटी ने अधिकार से कहा
लड़का बोला,” पर आंटी ....“
आंटी ने बीच में टोक दिया, “ जब कमाने लगे तो ज्यादा दे
देना, चल कोई दूसरी किताब दे” लड़का मुस्कुराया और एक किताब और लाकर दी
“कहानी की आवाज, लेखक रामदीन ‘कलम’, ऐ तुम सब लेखक पागल होते हो क्या?” आंटी ने लड़के से पूछा, लड़का कुछ
कहना चाहता था पर आंटी उठी और चली गई|
आज अचानक रात को दो बजे लड़के की नींद खुल गई, लड़ाई
की आवाजें आ रही थी, आंटी जोर से अंकल को गालियाँ दे रही थी, अंकल, आंटी को मार
रहे थे शायद, भद्दी भद्दी गालियों के साथ चीखने की आवाज, लड़का सो ना पाया, आंटी को
देखने की इक्षा थी सो जल्दी ही सुबह, पानी मांगने पहुच गया|
“आंटी एक बोतल पानी दे दीजिए” लड़के ने दरबाजे के बहार से ही आवाज लगाईं
आंटी ने एक बोतल पानी लाकर दिया, लड़के ने देखा आंटी
के ओंठ सूजे है और गालों पर उंगलीयो के निशान है, आंटी एक दर्द के साथ मुस्कुराई
और बोली,” कभी कभी तेरे अंकल ज्यादा
पी लेते है, संभलती नहीं उनसे रे, आज जल्दी उठ गया रे तू |”
“बस ऐसे ही भूख लगी थी” लड़के ने कहा
“पराठे खायेगा??” आंटी बोली, लड़के ने हां में सर हिलाया, “चल तू कमरे में जा, मैं चाय और
पराठे बना के लाती हूँ” लड़का चला गया|
आंटी चाय और पराठे लेकर आयी, दोनों साथ साथ खाने
लगे, आंटी ने एक निबाला अपने हाथ से लड़के को खिलाया और अपनी आँखों से आसू पोंछते
हुये बोली, “ कौन
कौन है तेरे घर में?”
लड़का बोला, “माँ और बाबूजी, दीदी की शादी हो गई है|”
“कभी मिलाने नहीं आते न तू जाता है कभी” आंटी ने पूछा
“बाबूजी नाराज रहते है, मैं कमाता नहीं इसलिये, माँ को भी
बात नहीं करने देते” लड़के
ने भारी आवाज में कहा
“चल कोई बात नहीं लड़के सब ठीक हो जाएगा” आंटी ने ये कहकर लड़के को गले से
लगा लिया| अब जब भी आंटी कुछ खास पकवान बनाती लड़के को दे जाती|
उस दिन सुबह से ही लड़का सिगरेट पर सिगरेट पी रहा था,
आंटी देख रही थी, ये सातवीं सिगरेट थी, आंटी ने लड़के से कहा “ लड़के ये सिगरेट के पैसे तेरे
पास आ जाते है, वैसे भूखा डला रहता है”
लड़के ने कहा, “आंटी एक कहानी लिखनी है समझ नहीं आ रहा कहाँ से लिखू, क्या
लिखू??“
“चाचा को पहचानता है?” आंटी ने पूछा
“हां” लड़के ने कहा
“उनसे बात किया कर, उस बुढ्ढे को सब पता है रे” आंटी ने कहा
लड़का चाचा के पास आने जाने लगा, अभी तीन नई कहानियाँ
लिखी है दो अखबार में आई है, अब चाचा बीडी की जगह सिगरेट पीते है, राजाराम लड़के का
ब्रांड ले आया है|
कुछ
महीने और निकल गये, एक दिन लड़का कहीं जा रहा था, आंटी ने पूछा,” कहाँ जा रहा है रे लड़के?”
“आंटी इंटरव्यू है” लड़के ने कहा
“नौकरी करेगा“आंटी ने पूछा
“हाँ, पैसे नहीं है बिलकुल और मुझे भी तो अपना घर बनना है” लड़के ने कहा
“ठीक है जा” आंटी ने मुस्कुराते हुये कहा
लड़का अब काम पर जाने लगा था, आंटी को किराया भी पूरा
देता था, चाचा की सिगरेट बाकायदा चालू थी, राजाराम दो चार और ब्रांड ले आया था|
दो महीने बाद एक दिन शाम को फिर
आंटी ने लड़के को रोका लिया “अब अखबार नहीं मंगाता रे लड़के” आंटी ने पूछा
“नहीं आंटी, पढ़ने का समय नहीं मिलता” लड़के ने कहा
“अब किताबे भी आना कम हो गई है” आंटी ने पूछा
“हां आंटी, पढ़ने का समय नहीं मिलता” लड़के ने कहा
“खाना खायेगा रे, पराठे बनाये है” आंटी ने फिर पूछा
“नहीं आंटी, खा कर आया हूँ” लड़के ने कहा
“चल ठीक है रे लड़के” आंटी ने उदासी से कहा, लड़का चला गया, आंटी ने आज बहुत
दिनों के बाद टी.वी. चालू कर ली, दस मिनिट बाद बन्द कर दी|
तीन दिन बाद आंटी ने फिर आवाज दी “लड़के, इस महीने के हिसाब में
तुमने पाँच सौ रूपए ज्यादा दिए है”
“आपने ही तो कहा था आंटी, जब कमाने लगे तो दे देना”, लड़के ने कहा
“कितना कमाने लगा है रे”, आंटी ने फिर पूछा
“बीस हजार रुपया मिलते है, और आने जाने का अलग से”, लड़का बोला
“अच्छा है रे, अब तो बाबूजी खुश होंगे?” आंटी ने पूछा
“हां” लड़के ने उदासी से कहा
“तेरी अगली किताब कब आ रह है रे” आंटी ने उत्साह से पूछा
“आंटी अब किताब नहीं लिखूगां” लड़के ने धीरे से कहा
“क्यूँ रे” आंटी ने आश्चर्य से पूछा
“समय नहीं मिलता अब, और कौन सा रोटियाँ मिल जाती है लिखने
से, और घर भी बनना है अपना” लड़के ने खीझ कर उत्तर दिया, आंटी कुछ कहना चाहती थी, पर
लड़का चला गया| आंटी ने फिर टी.वी. चालु की और आधे घंटे देखती रही|
आज
सुबह सुबह राजाराम ने आंटी को आवाज दी, और कहा “आंटी कोई कोरियर वाला आया है, हमारे शायर साहब को पूछ रहा
है”
आंटी ने भड़क कर जवाब दिया, “क्या शायर साहब शायर साहब लगा
रखा है, उसका नाम है विभोर, यहाँ कोई शायर नहीं रहता, चल भाग यहाँ से”
राजाराम चला आया, जब चाचा को राजाराम ने ये बात बताई
तो चाचा ने कहा, “ला रे
राजाराम, बंडल निकाल, आज से अपनी सिगरेट बन्द और अब तू भी सिगरेट लाना बन्द कर दे” राजाराम ने चाचा को बीडी दी और
खुद के लिये घिस्सा बनाने लगा|
और वहाँ
आंटी ने कोरियर वाले से पूछा, “ क्या मंगाया है लड़के ने??”
कोरियर वाले ने कहा, “मोबाइल है आंटी”
इतना सुनते ही आंटी ने लड़के को बड़ी कर्कश आवाज दी,” विभोर राव तुम्हारा कोरियर आया
है”
लड़के को आश्चर्य हुआ, आंटी आज नाम से बुला रही है,
लड़का दौड़ कर आया, और आश्चर्य से बोला, “क्या आंटी ??”
आंटी ने खुद को काबू करते हुए बोला, “विभोर राव तुम्हारा कोरियर है और
आज शाम तक मकान खाली कर देना”
इतना बोल कर आंटी चली गई, विभोर उन्हें विस्मित भाव
से देखता रहा, आंटी ने अपने कमरे में जाकर तेज आवाज में टी. वी. चला ली|
लड़का जा चुका था, चाचा अब बीडी पीते है, राजाराम
घिस्सा खाता है और आंटी ने मकान किराय से देना बन्द कर दिया है, अब उस तीसरी गली
के आखिरी मकान से टी.वी के चलने की तेज आवाजे आती रहती है|
~©अमितेष जैन
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