
आज सालो बाद इमारत का रंगरोगन हो रहा है, चितकबरा रंग और निखर आया है, खिड़कियों पर लगे काँचो की सफाई हुई है, पान तम्बाकू के धब्बों को हटाया है, सफाईवाले, माली, पार्किंगवाले और चपरासी को नये कपड़े मिले है| फेरन को चपरासी बता रहा था कि अब साहब का बड़ा लड़का ऑफिस का मालिक हो गया है, विलायत से पढ़ कर आया है, ये बड़ा समझदार है, साहब तो इसके आगे कुछ नहीं| फेरन ने सोचा चलो अच्छा हुआ, इस बहाने इमारत की सफाई तो हुई|
अभी दो चार दिन ही हुये थे नये साहब को आये के फेरन देखता है नये साहब उसी की ओर चले आ रहे है, रोबदार है, गठीला बदन, एकदम वों फिल्मो का हीरों नहीं है अमिताभ, हाँ उस जैसे ही लगते है और ये कोट पैंट तो क्या जंचता है उन पर, टाई भी चमकीली, लगता है जूते पोलिस कराएगें, सब को कुछ न कुछ दिया है साहब ने, हम भी दस रुपया लेगें आज, अब विलायत में इतना तो देते ही होंगे पोलिस कराने का और चाटाक की आवाज के साथ फेरन का ख्वाब टूटा| देखते ही देखते भीड़ जमा हो गई, नये साहब जाने क्या बोले जा रहे थे, और फेरन अपने गाल पर हाथ रखे उन्हें आश्चर्य से देख रहा था| नये साहब चले गये, फेरन ने भी अपना डोरा-डंगर उठाया और चला गया| फिर इमारत के मुख्य विशाल दरबाजे के दाई ओर भी सफाई रहने लगी|
चार दिन बाद चपरासी का फेरन से मिलना हुआ| चपरासी ने फेरन से कहा कि वों लौट क्यू नहीं आता, लौट आये| फेरन ने ये कह कर चपरासी को मना कर दिया कि उसे एक दूसरी जगह मिल गई है जहाँ कमाई तो ज्यादा नहीं पर वहाँ के साहब विलायत से पढ़ कर नहीं आये है और अब वों मुख्य विशाल दरबाजे के दाई ओर कभी नहीं आएगा|
रही बात नये साहब कि तो, नये साहब आज कल बाबुजियों को बहुत डांटते है कहते है कि इन बाबुजियों को जूते पहनने की भी अक्ल नहीं, अरे कभी पोलिस भी करा लिया करो| दसियों बार तो साहब चपरासी से ही कह चुकें है की फेरन मिले तो उस से कहना, नये साहब उसके बारे पूछ रहे थे, वों फिर से मुख्य विशाल दरबाजे के दाई ओर बैठ सकता है|
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