Friday 4 May 2012

कहानी : आत्मसम्मान


राहुल सो कर उठा, अपनी बालकनी पर जा कर, सिगरेट जलाई और देखने लगा घर के सामने वाली सड़क को| देख रहा था सब काम पर जा रहे है, कोई हाथ में लंच लेकर, कोई मोबाइल पर बात करते हुये, कोई भागते भागते, कोई किसी का इन्जार करते हुये, कोई बार बार घड़ी देख रहा था, राहुल ने  एक घृणित मुस्कान के साथ  सिगरेट का एक और कश लिया|  आज राहुल को ऑफिस की को चिंता न थी, कल ही तो नौकरी को लात मार कर आया था| फिर सोचने लगा चलो आज घर चलते है फिर सोचा रहने दो यार घर जाकर क्या कहुगां के नौकरी छोड़ दी, राहुल ने एक और कश सिगरेट का लिया| और फिर  सोचने लगा, राहुल घर में सबसे छोटा था तीन बड़ी बहनों का अकेला भाई, बहनों की मांगे पूरी हो या न ही राहुल की हर बात का ध्यान रखा जाता था, पिता सरकारी नौकरी में, तनखाह कुछ ज्यादा न थी फिर भी तीन बहनों की शादी की, राहुल को पढाया, उस पर माँ की बीमारी जाने कैसे किया होगा उन्होंने सब, राहुल ने सिगरेट का एक कश और लिया| फिर सोचा अभी साल भर पहले ही तो शादी हुई है अभी अभी एक नन्हा-मुन्हा घर में आया है उसे भी पढ़ाना है, बीबी की भी देखभाल करनी है  ये महीना तो जैसे तैसे निकल जाएगा फिर क्या करुगा, राहुल ने सिगरेट का एक कश और लिया| और किर सोचने लगा, अरे कल किया  ही क्या था मैंने यूँ ही चीखने लगा वों टकला बॉस मुझ पर, छोटी मोटी गलतियाँ तो ओटी ही रहती है और कल से पहले तो मुझसे कोई गलती भी नहीं हुई और ये गलती भी मेरी कहाँ थी, शर्मा ने ने फ़ाइल नहीं दी समय पर नही तो उसे भी खत्म कर देता, और इस से पहले कभी मेरा काम अधूरा रहा है? राहुल ने सिगरेट का एक और कश लिया| फिर सोचने लगा यार  घर भी तो चलाना है पापा क्या सोचेगे?, बीबी से क्या कहुगां?, माँ की हालत भी बिगड़ती जा रही है और आस पास के लोग तो सवाल पूछ पूछ कर ही मार डालेगें, राहुल ने एक कश लिया| फिर सोचा अब मेरा भी कोई आत्मसम्मान है के नहीं फिर बॉस घिच घिच करेगा, दूसरी जॉब ढूँढ लेता हूँ, पर वों भी क्या आसानी  से मिल जायेगी, अभी तो जैसे तैसे मिली थी भाग भाग के हालत खराब थी, और मिल भी गई तो क्या वहाँ ऐसा सलूक नहीं होगा, राहुल ने एक और कश लिया| कुछ सोच और अपने लोअर की जेब से मोबाइल निकाला, टकले बॉस को लगभग गाली देते हुये फोन किया| 
'हल्लो'
'सर गुड मोर्नींग'
'हां राहुल कहो'
'सर कल के लिये सॉरी'
'क्यू क्या हुआ, आ गई अकल ठिकाने पर, कल तो बड़ा फूल रहा था तू, सुन तेरे जैसे सत्तर आते जाते है यहाँ, क्या बोला रहा था ऐसी सौ नौकरी मिल जायेगी'
'सर बोला ना सॉरी, कल जरा गुस्सा आ गया था'
'अवे अपना गुस्सा अपने पास रख, और सुन यदि काम करना है तो सुनना भी पढ़ेगा और गाली भी खानी पढ़ेगी, साले तुम जैसे लोगो से जरा प्यार से क्या बोल लिये, चढ़ गये ऊपर'
'सर सॉरी अब गलती नहीं होगी'
'ठीक है, लेकिन अब कुछ किया तो साले कहीं और भी जॉब नहीं कर पायेगा और सुन तेरे जैसे लोगो का कोई आत्मसम्मान नहीं होता, घर छोड़ के आया कर सेल्फ-रिसपेक्ट,आ जा और टाइम पर '
'थैंक्स सर'
'इट्स ओके'
राहुल ने फोन काटा , सिगरेट का आखरी कश लिया, राहुल का पूरा शरीर जल रहा था, आँख में आसू लिया, किस्मत को कोसते हुये, बाथरुम में घुस गया| अपने जले हुये आत्मसम्मान के निशान धोने...........

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