Monday 16 July 2012

लघुकथा : आहार श्रंखला

वों गाँव के दूसरे छोर पर बैठा था| अभी अभी कुछ कुत्तों से उसने पीछा छुडाया था| घाव बहुत गहरे नहीं थे , शायद कुछ कुत्तों के पंजे लग गये थे, जलन हो रहे थे| सोच रहा था, क्यू उसने उस पक्षी को बचाया, वों कुत्तों का आहार था और भगवान ने भी तो यही तरीका बनाया है, एक आहार श्रंखला है एक व्यवस्था है| तभी पीछे से प्रहार हुआ और एक ही बार में उसके प्राण निकल गये| अगले दिन अखबारों में लोगो ने पढ़ा 'भाई ने भाई की जान ली|'
~~ ©अमितेष जैन

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